आज अपनी बात एक छोटी सी कहानी से शुरू करती हूँ
एक 20 वर्ष का युवक पिताजी के साथ रेलगाड़ी मे सफर कर रहा था । जब रास्ते मे पहाड़, नदी, हरे वन, लहलहराती फसलें आदि देखता तो पिता को कहता देखो कितना सुंदर दृश्य है। पिता उसके बारे मे बताते, वह ताली बजा कर खुश होता। साथ मे बैठे सहयात्रियों ने उस पिता से कहा शोर बन्द करें। उस पिता ने कहा इसे कैसे मना करुं। यह अन्धा था दो दिन पूर्व ही इसे नेत्र मिले हैं तो इसे असीम प्रसन्नता हो रही है। यह सुनकर सहयात्रियों ने क्षमा मांगी।एक पुत्र देख पाया क्योंकि किसी ने मृत्योपरांत अपनी आँखें दान कर दी,जोकि पूरे शरीर के साथ एक मुट्ठी राख में बदलने वाली थी ।
यह दुनियां बहुत खूबसूरत है. हमारे आसपास की हर वस्तु में एक अलग ही सुंदरता छिपी होती है जिसे देखने के लिए एक अलग नजर की जरुरत होती है| दुनियां में हर चीज का नजारा लेने के लिए हमारे पास आंखों का ही सहारा होता है. लेकिन क्या कभी आपने यह सोचा है कि बिन आंखों के यह दुनियां कैसी होगी?
थोड़ी देर के लिए अपनी आंखों पर पट्टी बांधकर देखें दुनियां कैसी लगती है| आंखों के बिना तो सही से चला भी नहीं जा सकता लेकिन कुछ अभागों की दुनियां में परमात्मा ने ही अंधेरा लिखा होता है जिन्हें आंखें नसीब नहीं होतीं| कई बच्चे इस दुनियां में बिना आंखों के ही आते हैं तो कुछ हादसों में आंखें गंवा बैठते हैं|
नेत्रदान :--
भारत मे करीब 1.25 करोड लोग दॄष्टिहीन है, जिसमे से करीब 30 लाख व्यक्ति नेत्ररोपण द्वारा दॄष्टि पा सकते हैं। सारे दॄष्टिहीन नेत्ररोपण द्वारा दॄष्टि नहीं पा सकते क्योंकि इसके लिये पुतलियों के अलावा नेत्र सबंधित तंतुओं का स्वस्थ होना जरुरी है। पुतलियां तभी किसी दॄष्टिहीन को लगायी जा सकती है जबकि कोई इन्हे दान में दे। देश की इतनी अधिक जनसंख्या को देखते हुए 30 लाख नेत्रदान हो पाना आसान लगता है परन्तु ऎसा नही है।
प्रति वर्ष 80 लाख मॄतको में सिर्फ़ 15 हज़ार ही नेत्रदान हो पाते हैं। इससे भी अधिक दुर्भाग्यपूर्ण और शर्मिन्दा करने वाला तथ्य यह है कि बडी मात्रा में दान किये हुए नेत्र श्रीलंका से आते है। यह छोटासा देश, न सिर्फ़ हमें बल्कि अन्य देशों को भी दान में मिले नेत्र प्रदान करता है।
कौन कर सकता है नेत्रदान :--
1. नेत्रदान के लिये उम्र एवं धर्म का कोई बन्धन नही हैं। चश्मा पहननेवाले या जिनका मोतीयाबिंद का आपरेशन हो चुका हो ,मधुमेह, दमा,ह्रदय रोग से पीड़ित व्यक्ति भी नेत्रदान कर सकते हैं।
2. केवल वही व्यक्ति जो एड्स,ब्लड कैंसर,पीलिया एवं रेबीज जैसी संक्रामक बिमारियों से पीड़ित या पुतलियों संबधीं रोगो से पीडित हो वह नेत्रदान नही कर सकते।
3. किसी दुर्घटना में यदि पुतलियां ठीक हो तो मुंबई जैसे शहर में कारोनर या पुलिस की अनुमति से नेत्रदान किया जा सकता है।
4. नेत्रदान मॄत्यु के बाद 3 या 4 घंटे के अन्दर होना चाहिए। असाधारण परिस्थिति में 6 घंटे तक नेत्रदान हो सकता है।
आइये हम न सिर्फ़ नेत्रदान करें बल्कि उसका प्रचार भी करें और दुसरों को नेत्रदान के लिये प्रेरित करें।
समाज में फैली कुछ भ्रांतियाँ :--
1.लोगों का ऐसा मानना है कि भगवान ने जब पूरा शरीर देकर भेजा है तो हम इसे अधूरा वापिस कैसे ले जायेंगे 2.अगर हमने मृत्योपरांत आँखें निकलवा कर किसी को दे दी तो , हम भी अगले जन्म में अँधे पैदा होंगें ।
बन्धुओं आप भी मृत्योपरांत अपनी आंखों का दान कर किसी सूरदास के जीवन मे खुशियों की बौछार कर दें। धन्यवाद।
सरिता भाटिया
एक 20 वर्ष का युवक पिताजी के साथ रेलगाड़ी मे सफर कर रहा था । जब रास्ते मे पहाड़, नदी, हरे वन, लहलहराती फसलें आदि देखता तो पिता को कहता देखो कितना सुंदर दृश्य है। पिता उसके बारे मे बताते, वह ताली बजा कर खुश होता। साथ मे बैठे सहयात्रियों ने उस पिता से कहा शोर बन्द करें। उस पिता ने कहा इसे कैसे मना करुं। यह अन्धा था दो दिन पूर्व ही इसे नेत्र मिले हैं तो इसे असीम प्रसन्नता हो रही है। यह सुनकर सहयात्रियों ने क्षमा मांगी।एक पुत्र देख पाया क्योंकि किसी ने मृत्योपरांत अपनी आँखें दान कर दी,जोकि पूरे शरीर के साथ एक मुट्ठी राख में बदलने वाली थी ।
यह दुनियां बहुत खूबसूरत है. हमारे आसपास की हर वस्तु में एक अलग ही सुंदरता छिपी होती है जिसे देखने के लिए एक अलग नजर की जरुरत होती है| दुनियां में हर चीज का नजारा लेने के लिए हमारे पास आंखों का ही सहारा होता है. लेकिन क्या कभी आपने यह सोचा है कि बिन आंखों के यह दुनियां कैसी होगी?
थोड़ी देर के लिए अपनी आंखों पर पट्टी बांधकर देखें दुनियां कैसी लगती है| आंखों के बिना तो सही से चला भी नहीं जा सकता लेकिन कुछ अभागों की दुनियां में परमात्मा ने ही अंधेरा लिखा होता है जिन्हें आंखें नसीब नहीं होतीं| कई बच्चे इस दुनियां में बिना आंखों के ही आते हैं तो कुछ हादसों में आंखें गंवा बैठते हैं|
नेत्रदान :--
भारत मे करीब 1.25 करोड लोग दॄष्टिहीन है, जिसमे से करीब 30 लाख व्यक्ति नेत्ररोपण द्वारा दॄष्टि पा सकते हैं। सारे दॄष्टिहीन नेत्ररोपण द्वारा दॄष्टि नहीं पा सकते क्योंकि इसके लिये पुतलियों के अलावा नेत्र सबंधित तंतुओं का स्वस्थ होना जरुरी है। पुतलियां तभी किसी दॄष्टिहीन को लगायी जा सकती है जबकि कोई इन्हे दान में दे। देश की इतनी अधिक जनसंख्या को देखते हुए 30 लाख नेत्रदान हो पाना आसान लगता है परन्तु ऎसा नही है।
प्रति वर्ष 80 लाख मॄतको में सिर्फ़ 15 हज़ार ही नेत्रदान हो पाते हैं। इससे भी अधिक दुर्भाग्यपूर्ण और शर्मिन्दा करने वाला तथ्य यह है कि बडी मात्रा में दान किये हुए नेत्र श्रीलंका से आते है। यह छोटासा देश, न सिर्फ़ हमें बल्कि अन्य देशों को भी दान में मिले नेत्र प्रदान करता है।
कौन कर सकता है नेत्रदान :--
1. नेत्रदान के लिये उम्र एवं धर्म का कोई बन्धन नही हैं। चश्मा पहननेवाले या जिनका मोतीयाबिंद का आपरेशन हो चुका हो ,मधुमेह, दमा,ह्रदय रोग से पीड़ित व्यक्ति भी नेत्रदान कर सकते हैं।
2. केवल वही व्यक्ति जो एड्स,ब्लड कैंसर,पीलिया एवं रेबीज जैसी संक्रामक बिमारियों से पीड़ित या पुतलियों संबधीं रोगो से पीडित हो वह नेत्रदान नही कर सकते।
3. किसी दुर्घटना में यदि पुतलियां ठीक हो तो मुंबई जैसे शहर में कारोनर या पुलिस की अनुमति से नेत्रदान किया जा सकता है।
4. नेत्रदान मॄत्यु के बाद 3 या 4 घंटे के अन्दर होना चाहिए। असाधारण परिस्थिति में 6 घंटे तक नेत्रदान हो सकता है।
आइये हम न सिर्फ़ नेत्रदान करें बल्कि उसका प्रचार भी करें और दुसरों को नेत्रदान के लिये प्रेरित करें।
समाज में फैली कुछ भ्रांतियाँ :--
1.लोगों का ऐसा मानना है कि भगवान ने जब पूरा शरीर देकर भेजा है तो हम इसे अधूरा वापिस कैसे ले जायेंगे 2.अगर हमने मृत्योपरांत आँखें निकलवा कर किसी को दे दी तो , हम भी अगले जन्म में अँधे पैदा होंगें ।
बन्धुओं आप भी मृत्योपरांत अपनी आंखों का दान कर किसी सूरदास के जीवन मे खुशियों की बौछार कर दें। धन्यवाद।
सरिता भाटिया